स्टेबलाइजर, ये एक ऐसा इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है जो कि आज के समय में लगभग हरेक घरों में पाया जाता है। ये तो हम सभी जानते हैं कि स्टेबलाइजर का काम वोल्टेज को स्टेबल रखना होता है अर्थात बिजली के वोल्टेज को हमेशा लगभग एक-समान रखना होता है।
हम सभी जानते हैं कि यदि मेन लाइन में कम वोल्टेज हो तो stabilizer उसे जरूरत के हिसाब से बढ़ा देता है या फिर यदि मेन लाइन में ज्यादा वोल्टेज हो तो स्टेबलाइजर उसे भी जरूरत के हिसाब से कम भी कर देता है। कुल मिलाकर स्टेबलाइजर हमेशा बिजली के वोल्टेज को लगभग एक-समान जरूरत के हिसाब से रखता है जिससे कि हमारे उपकरणों को कोई नुकसान नहीं पहुँचता और वे सुरक्षित रहते हैं।
बात अगर वोल्टेज को कम करने की हो तो मान सकते हैं कि स्टेबलाइजर ये कर सकता है, लेकिन बात अगर वोल्टेज बढाने की हो तो क्या आपने कभी सोचा है कि उतना वोल्टेज स्टेबलाइजर लाता कहाँ से है! क्या स्टेबलाइजर मेन लाइन से ही ज्यादा वोल्टेज खींचता है या फिर वो खुद से ज्यादा वोल्टेज पैदा करता है!! बहरहाल, अगर हम ये कहें कि हमारा ये सवाल ही गलत है तो आपको कैसा लगेगा!!
ये पोस्ट क्यों लिखा जा रहा है?
स्टेबलाइजर खुद से वोल्टेज बढ़ाता है या मेन लाइन से खींचता है, ये वो सवाल है जो कि आमतौर पर हम और हमारे मित्र बचपन में सोचा करते थे (मतलब अभी हम कौन-से बूढ़े हो गए हैं 😅) और इस बारे में हमारा तर्क कुछ और था जबकि दोस्तों का तर्क कुछ और। हमारा कहना था कि stabilizer मेन लाइन से ही वोल्टेज खींचता है जबकि हमारे कुछ दोस्तों का कहना था कि नहीं स्टेबलाइजर खुद से वोल्टेज पैदा करता है (मतलब जेनेरेट करता है)। लेकिन ज्यादातर दोस्तों का कहना था कि “नहीं, स्टेबलाइजर मेन लाइन से भी वोल्टेज खींचता है और खुद से भी पैदा करता है।
खैर; हमलोगों को खुद न तो स्टेबलाइजर खरीदना था और न ही बिजली की बिल चुकाना था, इसलिए हमलोगों को क्या पड़ी थी कि इस बारे में लॉजिकल बातें मालूम करें और इसके पीछे का साइंस जानने की कोशिश करें। इसलिए जैसे ही लूडो खेलने बैठे वैसे ही हमारा ये इम्पोर्टेन्ट डिस्कशन ऑटोमेटिकली स्थगित हो गया और हम अपनी दुनिया में बिजी हो गए।
लेकिन धीरे-धीरे जब समय बीतता गया और हमारा जन्म हुआ; ओह्ह सॉरी, मेरा मतलब है कि जब हमारा जन्म लिया हुआ 15 साल या इससे भी ज्यादा हो गया तबतक हमें इलेक्ट्रॉनिक्स के दुनिया की थोड़ी-बहुत जानकारी होने लगी और तब हमें इस सवाल का जवाब ऑटोमेटिकली मिल गया। और अब जबकि हमें हमारे इस इम्पोर्टेन्ट सवाल का जवाब मिल गया तो बहुत मन करता है कि उन दोस्तों के गर्दन पकड़कर बोलूं कि “ले पढ़ मेरे पोस्ट को, और बता कि तू सही था या फिर मैं”। लेकिन फिर ये सोचकर ऐसा नहीं करता कि वो लोग फिर हमें मार-मारकर हमारा भर्ता बना देंगे 😒। खैर, अब प्रवेश करते हैं साइंस की दुनिया में।
क्या स्टेबलाइजर खुद से वोल्टेज बढाता है?
चूंकि stabilizer का काम ही होता है वोल्टेज को नियंत्रित रखना इसलिए इस बात में कोई संशय नहीं कि वोल्टेज बढ़ाने का काम स्टेबलाइजर अपने पॉवर पर करता है। इसलिए हमारा सवाल ये है कि क्या स्टेबलाइजर “ज्यादा वोल्टेज” पैदा करता है या फिर मेन लाइन अर्थात बिजली से ही वोल्टेज खींचता है। लेकिन हकीकत में ये सवाल भी सही नहीं है। हम ऐसा क्यों कह रहे हैं इसके लिए आपको सबसे पहले वोल्ट (वोल्टेज), करंट और वाट और इनके बीच के सम्बन्ध के बारे में जानना होगा।
जैसा कि उपर्युक्त पोस्ट में हमने बताया था कि वोल्टेज जो है वो करंट के दौड़ने की स्पीड मात्र है, इसका सीधा-सा मतलब ये हुआ कि स्टेबलाइजर खुद से वोल्टेज पैदा नहीं करता है बल्कि ये सिर्फ करंट के दौड़ने की गति को बढाने का काम करता है। अर्थात, मेन सप्लाई से ही ज्यादा करंट लेकर बस उसके दौड़ने की गति को बढ़ा देता है।
स्टेबलाइजर कैसे बिजली बर्बाद करता है?
अभी तक तो आप शायद सोच रहे होंगे कि stabilizer खुद से बिजली पैदा करता है लेकिन अगर हम आपको कहें कि स्टेबलाइजर खुद से बिजली पैदा तो करता नहीं है उल्टे बिजली की बर्बादी करता है, तो ये सुन कर आपको कैसा लगेगा!! जी हाँ, स्टेबलाइजर निम्नलिखित कुछ तरीकों से बिजली बर्बाद करता है…
1) स्टेबलाइजर के सर्किट के द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली बिजली की खपत
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि स्टेबलाइजर में वोल्टेज को हमेशा एक-समान बनाए रखने के लिए उसमें कुछ सर्किट्स का इस्तेमाल किया जाता है। इन सर्किट को काम करने के लिए इन्हें अलग से कुछ पॉवर (बिजली) की जरूरत पड़ती है जो कि टेक्निकली देखा जाये तो बिजली की बर्बादी ही है।
2) ट्रांसफार्मर के द्वारा होने वाली बिजली की बर्बादी
ये तो हम सभी जानते हैं कि स्टेबलाइजर में मेन काम जो वोल्टेज को कम-ज्यादा करने का होता है वो ट्रांसफार्मर का ही होता है, बाकी सर्किट तो बस आटोमेटिक सिस्टम और उपयोगकर्ता के सुविधा के लिए लगाया जाता है। आप चाहे स्टेबलाइजर के माध्यम से किसी उपकरण का इस्तेमाल करें या न करें, अगर स्टेबलाइजर में पॉवर जा रहा है तो उस समय ट्रांसफार्मर अपना काम कर रहा होता है और कुछ मात्रा में बिजली भी खपत हो रहा होता है।
3) हीटिंग से होने वाले लॉस
हरेक वो उपकरण जो बिजली पर काम करते हैं, इस्तेमाल होने के दौरान हीट (गर्म) होने लगते हैं। स्टेबलाइजर के भी ट्रांसफार्मर और बाकी सर्किट्स काम करते समय हीट होते हैं। ये हीट भी बिजली का ही लॉस है क्योंकि ये बात हम सभी जानते हैं कि किसी भी ऊर्जा को न तो निर्मित किया जा सकता है और न ही पैदा किया जा सकता है, बस उन्हें एक-दूसरे में कन्वर्ट किया (बदला) जा सकता है।
तो दोस्तों, उम्मीद है कि स्टेबलाइजर के वोल्टेज घटाने-बढ़ाने से सम्बंधित सवाल के जवाब आपको मिल गए होंगे। अगर इस पोस्ट को समझने में आपको कहीं पर कोई प्रॉब्लम आ रही हो तो कमेंट करके हमें जरूर बताएं, हम जल्द-से-जल्द आपके सवालों का जवाब देने की कोशिश करेंगे।
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Dhirendra Kumar Kashyap says
जानकारी तो अच्छी दे रहे हैं और हिंदी में है इसलिए और ज्यादा अच्छा लगा, बस एक बात है कि कभी कभी पर्सनल और मजाकिया बाते ज्यादा हो जाती है जिससे main topic पर आने में देरी होती है जिससे थोड़ा सा अनकंफर्टेबल फील होने लगता है। बाकी आपका काम बहुत अच्छा लगा मुझे, धन्यवाद लखनऊ से धीरेन्द्र कुमार कश्यप।
The Real Person!
Sorry Dhirendra ji, hum jaldi hi in chijon ko rectify karenge.
riya says
Nice information… Good job keep it up… Thanks for sharing.
The Real Person!
Welcome dear