एक time ऐसा था जब किसी गाँव या मोहल्ले में पहली बार किसी आदमी ने market में नया launch हुए Black & White television खरीदा था। एक antena लगाकर इस टेलीविज़न पर एक free का चैनल DD National चलाया जाता था। डीडी नेशनल को DD1 और दूरदर्शन के नाम से भी जाना जाता है। जब एंटीना लगाकर लोग इस channel को देखते थे तो weak signal की वजह से tv पर clean video प्रदर्शित नहीं होता था।
लेकिन फिर भी उस समय television और national का ऐसा craze था कि पूरे गाँव के लोग बड़े ही चाव से एक जगह पर इकठ्ठा होकर इस पर दिखाए जा रहे programme को एक साथ बैठकर देखते थे। इतना ही नहीं, आज की तरह उस समय टीवी को जब-तब नहीं चलाया जाता था। उस time लगभग सभी जगह tv चलने का अपना-अपना एक अलग समय होता था।
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जब टीवी को चलाया जाता था तब वहां पर मेले जैसी भीड़ जमा हो जाती थी जिस वजह से लोगों को खड़ा होकर भी देखना पड़ता था लेकिन फिर भी सभी लोग उस पर दिखाए जा रहे कार्यक्रमों को बड़े ही गौर से देखा करते थे। आज के समय में यदि किसी भी channel पर कोई प्रचार play हो जाता है तो लोग झट से दूसरा चैनल लगा देते हैं, लेकिन उस समय television एक ऐसा अजूबा चीज था कि लोग नेशनल पर प्रसारित हो रहे एक-एक advertise को भी बड़े ही चाव से enjoy ले-लेकर देखा करते थे।
हालांकि, उस समय television से लेकर VCD जैसे उपकरण भी बहुत ही costly हुआ करते थे जिस वजह से एक middle class family वाले इंसान उसे खरीद पाने में अक्षम हुआ करते थे। बहुत लोगों को तो उस समय Colour TV, Cable, Set-Top-Box, Telephone, Remote DVD और DTH जैसे उपकरणों के बारे में पता भी नहीं था कि आखिर ये होता क्या है।
अपने पसंद का programme देखना था इतना मुश्किल
उस समय सभी लोग बस इतना जानते थे कि या तो cinema holl जाकर movie देखो, या DD1 पर झिलमिलाते कार्यक्रम देखो या फिर कैसेट खरीदकर dvd या cd पर अपने पसंद की film या tv show देखो। हालांकि उस समय बहुत ही कम आम लोग फिल्म देखने सिनेमा हॉल जाते थे। ऐसा इसलिए क्योंकि उस समय हॉल भी बहुत कम हुआ करते थे और वो भी market में जिस वजह से वो ग्रामीण लोगों के घर से बहुत दूर हुआ करता था।
ऐसे में हॉल जाकर cinema देखने के लिए लोगों को करीब महीनाभर पहले ही plan बना लेना पड़ता था और date निर्धारित हो जाने के बाद लोग बड़ी ही बेसब्री से उस दिन का इन्तजार करते थे जिस दिन उन्हें जाना होता था। इतना ही नहीं, उस समय आज के तरह नंग-धरंग फिल्म नहीं बनाये जाते थे।
उस समय बनाये जाने वाले सभी film इतने मजेदार और शिक्षाप्रद होते थे कि कोई भी इंसान अपने पूरे family के साथ बैठकर उन्हें देख सकता था। इसलिए जब भी कोई ग्रामीण व्यक्ति हॉल जाकर film देखने जाता तो हरसंभव अपने पूरे परिवार के साथ जाता था। साथ ही गाँव से 2-3 और परिवार भी साथ जाता था और वो दिन उसके लिए किसी मेले के दिन से कम नहीं होता था।
कैसेट खरीदने के बाद एक ही film को महीनों तक देखते थे लोग
तो ऐसे में किसी भी व्यक्ति का बार-बार theater जाना नहीं होता था और उन्हें अपने गाँव में ही टीवी देखना पड़ता था। साथ ही उस समय vcd के एक original कैसेट की कीमत इतनी महँगी (लगभग 15 rs) पड़ती थी कि tv के मालिक भी उसे खरीदने से कतराते थे। कभी-कभार यदि कोई कैसेट खरीदकर लाते तो उसी को वो महीनों भर repeat कर-करके चलाकर देखा करते थे।
फिर जब एक ही movie को बार-बार देखकर वो bore हो जाते थे तो फिर से वही झिलमिलाहट वाला दूरदर्शन चैनल लगाकर बैठ जाते थे। बता दें कि उस समय गाँव में न तो ज्यादा लोग बिजली connection लिया करते थे और न ही उस time बिजली की स्थिति आज के जितनी अच्छी हुआ करती थी। उस समय दिन में यदि 1 घंटे बिजली आते तो 2 घंटे गायब रहते।
लेकिन एक अच्छी बात उस time ये थी कि बिजली के आने और जाने का एक time-table हुआ करता था। For example, लोगों को पता हुआ करता था कि 1 बजे बिजली आई है तो 3 बजे से पहले नहीं जायेगी। इसलिए सभी लोग 1 बजे के अन्दर ही अपना सभी जरूरी काम निबटा लेते थे और जल्द-से-जल्द अपने गाँव के सिनेमा घर पहुँचने की कोशिश करते।
जल्द-से-जल्द पहुँचने की कोशिश इसलिए करते ताकि वो अपनी seat को reserve कर सकें, अन्यथा कोई दूसरा व्यक्ति जाकर पहले बैठ जायेगा और पूरे 2 घंटे उन्हें खड़े होकर ही film देखना पड़ेगा। हालांकि ऐसा नहीं है कि लोग सिर्फ अपना ही भला देखते थे, दरअसल उस समय के लोग discipline के बहुत ही पक्के हुआ करते थे।
भले ही कोई व्यक्ति 1 बजे के बजाये 12 बजे से ही बैठकर अपने seat को book क्यों न कर ले, बाद में यदि कोई उससे ज्यादा बुजुर्ग व्यक्ति आता तो हरेक बैठा हुआ व्यक्ति अपने से बड़े व्यक्ति को सीट देने के लिए खड़ा हो जाता। लेकिन बुजुर्ग भी कम स्वाभिमान वाले नहीं हुआ करते थे, उनका सीधा-सा कहना होता था कि मैं देर से आया हूँ इसलिए मैं खड़ा होकर टीवी देखूंगा, तुम बैठ जाओ।
पुराने दिन गए, अब दुनिया हो गई है hitech
हालांकि ऊपर हमने शिष्टाचार की बात की है, लेकिन सही मायने में उस समय के लोग अपने स्वभाव के इतने अच्छे और नेकदिल हुआ करते थे कि आज के जमाने में वो एक कल्पना की वस्तु बनकर रह गई है। खैर, ऐसा ही चलते-चलते न जाने कब लोगों को डीवीडी के बारे में पता चला और फिर एक दिन ऐसा भी आया जब लोगों को डीटीएच के बारे में भी पता चला।
इसी बीच गाँव के लोगों की मेहनत भी रंग लाने लगी और सभी लोग अच्छे reputation में आने लगे और फिर बहुत सारे लोगों ने जैसे-तैसे करके रुपया जमा करके आखिरकार tv और dth भी खरीदकर लगा ही लिया। इसी बीच गाँव में BSNL के telephone booth भी लगने लगे थे और बहुत सारे लोगों ने तो Tata Indicom का wireless telephone भी ले लिया था।
फिर 1-2 साल में ही लोगों के पास Nokia का mobile भी दिखने लगा और फिर न जाने कब SD Card लगने वाला multimedia mobile भी launch हो गया। फिर इसके बाद अब तो smartphone के रूप में mobile market में ऐसा क्रांति आ गया है कि mobile और television के बीच का फर्क ही मिट गया है।
और-तो-और पतले और हलके LCD TV के launch हो जाने के बाद तो लगता है कि जैसे अब television का नामो-निशान ही न मिट जाएगा। न तो इसमें धुंधली figure की समस्या और न ही कैसेट लगाने की जरूरत। बस, memory card लगाओ और फिर full enjoy.
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Note:- ये लेख एक बुजुर्ग के अनुभव के आधार पर लिखा गया है।
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